ro बोहत सी हदीस है जो नमाज के वक्त पैंट को मोड़ने से मना करती है। इब्न अब्बास र.अ. रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया: 'मुझे हुक्म दिया गया है के मुख्य ७ हदियों पर सजदा करूं पेशानी और आप ने हाथ से नाक की तरफ इशारा किया दोनों हाथों दोनों घुटनों और दोनों क़दमों के पंजों पर और (ये के हम नमाज़ में) अपने कपड़ों और बालों को इखट्टा ना करें।' (बुखारी: अल अज़ान 812 - मुस्लिम: अल सलाह 490)। कपड़ो को इखट्टा करने का मतलब यह है कि कपड़े को मोड़ना हमें जमीन पर गिरने से रोकने के लिए जब कोई सजदा करता है। इमाम अन-नवावी फ़रमाते हैं: उलेमाओ का इसपर इत्तिफाक है कि अपने कपड़े, आस्तीन वगैरा मोड़ना की इजाज़त नहीं है। उलमाओ के इज्मा से इस चीज़ की इजाज़त नहीं है; ये मकरूह है और साथ-साथ ये ना-पसंददा है। तो अगर कोई शक्स इस हालत में नमाज पढ़ता है तो उसने जैसा कुछ गलत किया है लेकिन फिर भी उसकी नमाज हो जाएगी। इब्न अल-मुंदिर रिवायत करते हैं कि जो ऐसा करता है तो अपनी नमाज़ दोहरानी चाहिए और उनको ये रए अल-हसन अल-बसरी से रिवायत की है। अंत उद्धरण तुहफ़त अल-मिन्हाज, २/१६१-१६२ में ये कहा गया है: जो नमाज प