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۞ गुम्बद के अहकाम है:
उलेमा ए किराम माज़ी और जदीद डोनो मैं इस गुम्बद को बनाने में और इसको रंगने की टंकी (आलोचना) करता हूं। क्या सबकी वाजे यही है कि कहीं ये शिर्क के दरवाजे ना खोल दे।
हाफ़िज़ अल-सनानी (रहीमुल्लाह) ता-थीर अल-एतिकाद में कहते हैं:
"فإن قلت : هذا قبرُ الرسولِ صلى اللهُ عليه وسلم قد عُمرت عليه قبةٌ عظيمةٌ انفقت فيها الأموالُ . قلتُ : هذا جهلٌ عظيمٌ بحقيقةِ الحالِ ، فإن هذه القبةَ ليس بناؤها منهُ صلى اللهُ عليه وسلم ، ولا من أصحابهِ ، ولا من تابعيهم ، ولا من تابعِ التابعين ، ولا علماء الأمةِ وأئمة ملتهِ ، بل هذه القبةُ المعمولةُ على قبرهِ صلى اللهُ عليه وسلم من أبنيةِ بعضِ ملوكِ مصر المتأخرين ، وهو قلاوون الصالحي المعروف بالملكِ المنصورِ في سنةِ ثمانٍ وسبعين وست مئة ، ذكرهُ في " تحقيقِ النصرةِ بتلخيصِ معالمِ دارِ الهجرةِ " ، فهذه أمورٌ دولية لا دليليةٌ -
"अगर आप कहते हैं कि एक अज़ीम गुम्बद को बनाया गया था तो रसूलअल्लाह की कब्र के ऊपर काफी पैसे लगते थे तो मैं कहता हूँ कि ये सूरत ए हाल की बहुत बड़ी जाहिलियत है, क्योंकि ये गुम्बद रसूलअल्लाह ने नहीं बनाया था ना ही सहाबाओ ने और ना ही जिन्हों ने उनकी जोड़ी बनाई थी और ना ही उम्मत के उलेमाओ ने या फ़िर इमामो ने। बालकी रसूलल्लाह के कब्र के ऊपर के गुंबद को मिस्र के बादशाह के हुक्म पे बनाया गया था, जो बाद मुझे ऐ द जिंका नाम सुल्तान कलावुन अल-सालिही था और इनको मंसूर के बादशाह के नाम से भी जाना जाता था, 678 एएच मी। और इनका जिक्र तहकीक अल-नसरा बी तल्खीस मालिम दार अल-हिजरा में भी किया गया था। ये सारी चीजें मुल्क के हुक्म से किया गया था ना कि शरई दलाईल से। अंत उद्धरण।
स्थाई समिति के उलेमा फरमाते हैं:
“ऐसा कहीं से भी साबित नहीं है कि आप ﷺ के क़ब्र पर गुम्बद बन गई थी, जो अल्लाह के औलिया और नेक बंदो की कब्र के ऊपर गुम्बद बनाने का बहाना करते थे, क्योंकि ये आप ﷺ की हिदायत नहीं है कि उनके क़ब्र पर गुम्बद बन गए बनाई जाए और ये गुम्बद किसी सहाबा, ताबाईन, या हिदायत वाले इमाम जो के इब्तिदाई ज़माने के अनलोगो ने नहीं बनाई थी जिनलोगो की अच्छी गवाही की गवाही खुद रसूलल्लाह ने दी थी। बाल्की ये बिद्दती लोग ने किया था। और आपने ﷺ ने कहा कि जो भी हमारे मुआमलात में कोई ऐसी बात शामिल करे जो इस तरह नहीं है तो वो नमन्ज़ूर है...और ये भी साबित हुआ है कि अली आर.ए. ने अबुल-हयाज से कहा कि क्या तुमने उसे मकसद के लिए ना भेजा जैसा कि आप ﷺ ने मुझे भेजा है कि हर तस्वीर मिटा दो और हर ऊंची कब्र को बराबर क्रदो (रावाह मुस्लिम)। और ये कहीं से भी साबित नहीं है कि आप ﷺ ने कब्र पर गुम्बद बनाई थी और ना ही मारूफ़ इमाम से ये साबित है। बाल्की जो साबित है वो ये बताती है कि ये अमल गलत है। और किसी मुस्लिम को भी बिद्दतियो कि किसी अमल से ताल-लुक नहीं रखना चाहिए जिन्होनें रसूलअल्लाह के कब्र के ऊपर गुम्बद बनाई थी।” अंत उद्धरण।
शेख अब्द अल-अज्जेज़ इब्न बाज़, शेख अब्द अल-रज्जाक अफीफी, शेख अब्द-अल्लाह इब्न ग़दयान, शेख अब्द-अल्लाह इब्न क़ौद।
फतावा अल-लजनाह अल-दायिमा (२/२६४, २६५)।
۩ जाबिर र.अ. रिवायत करते हैं कि नबी ﷺ ने कब्र पर बैठना, कब्र का पक्का करवाना और कब्र पर इमारत बनवाना मन फरमाया था।
सहीह मुस्लिम, किताब अल जनाएज़, हदीस-२२४५।
۩ हज़रत आयशा सिद्दीक़ा र.अ. ने बयान किया के मैंने रसूलअल्लाह ﷺ से पूछा के क्या हातिम (काबा के पास की गोल दीवार) भी बैतुल्लाह में शामिल था?
आप ﷺ ने फरमाया के हां! . फिर मैंने पूछा के लोगों ने इसे कब में क्यों नहीं शामिल किया? आप ﷺ ने जवाब दिया के तुम्हारी क़ौम के पास खर्च की कमी पड़ गई थी। फिर मैंने पूछा कि ये दरवाजा क्यों ऊंचा बनाया? आप ﷺ ने फरमाया के ये भी तुम्हारी ही क़ौम ने किया ताकि जिसे चाहें अंदर आने दें और जिसे चाहें रोक दें। अगर तुम्हारी क़ौम की ज़मानत का ज़माना ताजा ताज़ा न होता और मुझे इसका खौफ़ न होता के उसका दिल बिगाड़ जाएगा तो हमसे हातिम को भी मैं काबे में शामिल कर देता और काबा का दरवाज़ा ज़मीन के बराबर कर देता।
साहिह अल-बुखारी, किताबुल हज, पुस्तक २५, हदीस-१५८४।
खैर.. इस्लामिक शरीयत वाज़ेह है बात से। और गुम्बद ए खिजरा नहीं तबह किया गया है इसका मतलब ये नहीं कि कब्र के ऊपर इमारत बनवाना जायज़ है। क्योंकि इस्लाम को जानने के लिए कुरान व सुन्नत को देखना चाहिए ना कि मुसलमानों को।
۩ शेख सालिह अल-उथैमीन (रहीमुल्लाह) फ़रमाते हैं:
“अगर ये गुम्बद ८ सदी तक रही है तो इसका मतलब ये नहीं कि इसकी इजाज़त है और इस मुआमले में खामोश रहने का मतलब ये नहीं है कि इसकी मंज़ूरी है और इसकी इजाज़त है। बाल्की मुस्लिम हुक्मरान को इस गुम्बद को हटा देना चाहिए और उसको वैपिस उसी तरह रखना चाहिए जिस तरह वो रसूल अल्लाह के जमाने में था। लोगों को गुम्बद हटाओ, जेब वा जीनत और कंदा कारी (उत्कीर्णन) जो मस्जिद में पाई जाती है उसको हटा देना चाहिए जब तक के वो किसी बड़े फिटने में मुब्तिला ना कर दे। लेकिन अगर ये कोई बड़े फिटने की तरफ ले जाती हो तो हुक्मरान को सही मौका पाने तक ताल देना चाहिए।” अंत उद्धरण.
बिदा अल-क़ुबूर, अन्वाउहा वा अहकामुहा (पृ. २५३)।
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अल्लाह हमें रसूलल्लाह ﷺ के हुक्म और उनके तारीके पर चलने की तौफीक दे..आमीन
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