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वित्र के बाद के नवाफ़िल- एक इल्मी बात

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۩ अगरचे बाज़ रिवायत में वित्र को रात की आखिरी नमाज़ क़रार दिया गया है जैसा के हज़रत इब्न ए उमर र.अ. से मारवी है के रसूल ﷺ ने फरमाया, "वित्र को अपनी रात की आखिरी नमाज बनाओ।"

सहीह अल बुखारी, किताब अल वित्र ﴾१४﴿, हदीस-९९८.

लेकिन दर्ज़ ज़ेल सही हदीथ से मालूम होता है के ये हुक्म महेज़ इस्तेहजाब के लिए है मतलब मुस्तहब है लेकिन फ़र्ज़ नहीं है और आप वित्र के बाद भी दो रकअत अदा फरमा लिया करते थे।

۩ हज़रत उम्म ए सलमा र.अ से मारवी है के "रसूल ﷺ वित्र के बाद २ रकातें पढ़ा करते थे।"

तिर्मिज़ी, हदीस-२९२, सुन्नन इब्न माजा, हदीस-११९५।

इस लिए अगर कोई शख़्स वित्र पढ़ कर सोजाए फिर के पिछले पहर उठ कर नवाफिल अदा करे तो वो आख़िर में दोबारा वित्र नहीं पढ़ेगा क्यू की हज़रत तलक़ इब्न अली से मरवी है के रसूल ﷺ ने फरमाया, "एक रात में दो वित्र नहीं है" .

तिर्मिज़ी, हदीस-४७०, सुन्नन अबू दाऊद, हदीस-१४३९, सनद सहीह।

۩ इमाम अहमद, इमाम शाफ़ेई, इमाम मालिक, इमाम सूरी, इमाम इब्न ए मुबारक और इमाम इब्न ए हज़म का यही वक्फ है और यही राजे और है।

तोहफ़ा अल हौज़ी # ५८८/२, नील उल अवतार # २५९/२, अलमहली बिल अथार # ९१/२।


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