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गैर-मुसलमानों को कुर्बानी के गोश्त देने में कोई बुराई नहीं है, खास कर जब वो आपका रिश्तेदार या पड़ोसि या कोई गरीब हो सिवाए उनको जो मुसलमानो से जंग करते हो। ये बात इस आयत से पता चलती है:
۩ 'जिन लोगों ने तुम से दीन के बारे में कहा कि मैं लड़ी नहीं लारी और तुम्हें जिला वतन नहीं किया उन्न के साथ सलूक-ओ-एहसान करनी और मुंसिफाना भलाई बरताओ कहना अल्लाह ताला तुम्हें नहीं रोकता बलके अल्लाह ताला तो इन्साफ करने वालों से मोहब्बत करता है है.'
सूरह मुमतहिना ﴾ ६० ﴿, आयत- ८.
अनलोगो को कुर्बानी का गोश्त देना उनके साथ इन्साफ करना और उन्हें सिलरहमी के पशेमंजर में आता है जिसकी अल्लाह ने हमें इजाज़त दी है।
۩ मुजाहिद रिवायत करते हैं कि एक भेड़ा (भेड़) अब्दुल्ला इब्न अम्र के लिए क़ुर्बान किया था उनके परिवार के एक शक्स ने, और जब वो (अब्दुल्ला इब्न अम्र) ऐ, उन्होन फरमाया: क्या तुमने मेरे अंदर कुछ हमारे याहुदी पड़ोस को दिया, क्या तुमने कभी हमारे यहुदी पड़ोसि को दिया? क्योंकि मैंने रसूलल्लाह ﷺ से ये फरमाते हुए सुना है कि, "जिब्रील मुसलसल मुझे पड़ोसियो से सिलरहमी करने की हिदायत करते रहे यहां तक कि मुझे लगा कि कहीं वो पड़ोसियो को वारिस ना बना दे।"
जामिया तिर्मिज़ी, हदीस-१९४३। इसे दारुस्सलाम ने सही करार दिया है।
۩ शेख़ इब्न बाज़ फ़रमाते हैं,
'काफिरों के सवाल से जो हम से जंग नहीं कर रहे हैं जैसे वो जिसे मुसलमानों ने हिफाजत का जिम्मा लिया है या वो जो मुसलमानों के हुकूमत में रहते हैं, उन्हें कुर्बानी का गोश्त और दूसरे तरह के सदके दे सकते हैं।'
मजमू फआवा इब्न बाज़ (१८/४८).
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