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मुसाफ़ा एक हाथ से या दो हाथ से?

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सही हदीसों की रोशनी में दोनों तरह से मुसाफ़ा करना सही है। हम दोनों तरीको से मुसाफा करने की कोशिश करते हैं। इमाम बुखारी र. अ का भी यही अकीदा था। 

सब से पहले हम दो हाथ से मुसाफा करने की कोशिश करते हैं। मैं याहा इमाम बुखारी र.ह. का तर्ज़-ए-इस्तादलाल बयान करता हूँ।

इमाम बुखारी रह. ने पहले एक बाब बंदा- "بَابُ المُصَافَحَةِ" यानि मुसाफा का बयान। क्या मैं इमाम बुखारी रह.ह. हूं? ने तीन (३) हदीस नकल की।

फिर इस के बाद एक और बाब बांधा- "بَابُ الأَخْذِ بِاليَدَيْنِ" यानी २ हाथ से पकड़ने का बयान। दूसरे बाब के साथ ही इमाम बुखारी रह. ने सलाफ का एक अमल बयान किया और कहा,

وَصَافَحَ حَمَّادُ بْنُ زَيْدٍ، ابْنَ المُبَارَكِ بِيَدَيْهِ

"हम्माद बिन ज़ैद र.अ.ने इब्ने मुबारक र.अ. से २ हाथों से मुसाफ़ा किया।"

फ़िर इस के बाद इमाम बुखारी र.अ ने ये हदीस नकल की है,

حَدَّثَنَا أَبُو نُعَيْمٍ، حَدَّثَنَا سَيْفٌ، قَالَ سَمِعْتُ مُجَاهِدًا، يَقُولُ حَدَّثَنِي عَبْدُ اللَّهِ بْنُ سَخْبَرَةَ أَبُو مَعْمَرٍ، قَالَ سَمِعْتُ ابْنَ مَسْعُودٍ، يَقُولُ عَلَّمَنِي رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم وَكَفِّي بَيْنَ كَفَّيْهِ 

इब्न मासूद र.अ. कहते हैं, रसूलअल्लाह ﷺ ने मुझे तशहुद सिखाया, उसका वक्त मेरा हाथ आप ﷺ के नफरतियों के दरमियान था।

साहिह अल बुखारी, हदीस- ६२६५.

अब आइए एक हाथ से मुसाफा को समझने की कोशिश करते हैं। एक हाथ से मुसाफा के कई दलाईल है। इमाम बुखारी हदीस लिखने से पहले अपने बाबा के बाद एक वाकया नकल करते हैं,

۩- وَقَالَ كَعْبُ بْنُ مَالِكٍ دَخَلْتُ الْمَسْجِدَ، فَإِذَا بِرَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَامَ إِلَيَّ طَلْحَةُ بْنُ عُبَيْدِ اللَّهِ يُهَرْوِلُ، حَتَّى صَافَحَنِي وَهَنَّأَنِي - 

काब बिन मलिक र.अ. रिवायत करते हैं कि माई मस्जिद में आया, वाहा पर मैंने रसूलल्लाह ﷺ को देखा। इसी बीच तल्हा बिन उबैद र.अ. उठ कर मेरे पास ऐ, मुझसे हाथ मिलाया और मुझे मुबारकबाद दी।

नोट: ऊपर की हदीस में हाथ का ज़िक्र है हाथो का नहीं। तो इसकी मुराद एक हाथ होगा। 

۩- عَبْدَ اللَّهِ بْنَ هِشَامٍ، قَالَ: «كُنَّا مَعَ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَهُوَ آخِذٌ بِيَدِ عُمَرَ بْنِ الخَطَّابِ

अब्दुल्ला बिन हिशाम र.अ. ने कहा, हम अल्लाह के नबी ﷺ के साथ थे, और वो उमर बिन खत्ताब र.अ. को (मुसाफा के दरमियान) एक हाथ से पकड़े हुए थे।

साहिह अल बुखारी, हदीस-६२६४।

इस हदथ को इमाम बुखारी र.ह. ने मुसाफा के बाब में नक़ल किया है।

इसी तरह एक हदीस में एक हाथ से मुसाफ़ा करने के लिए इस तरह आया है,

अब आइए एक हाथ से मुसाफा को समझने की कोशिश करते हैं। एक हाथ से मुसाफा के कई दलाईल है। इमाम बुखारी हदीस लिखने से पहले अपने बाबा के बाद एक वाकया नकल करते हैं,

إذا لقي المسلم أخاه المسلم، فأخذ بيده فصافحه، تناثرت خطاياهما من بين أصابعهما كما يتناثر ورق الشجر بالشتاء

तर्जुमा:

आप ने फरमाया, जब एक मुसलमान अपने मुसलमान भाई से मुलाकात करता है और हमारा एक हाथ पकड़ता है और मुसाफा करता है तो इन दोनों की उंगलियां के दरमियां से गुनाह इस तरह झड़ते हैं जिस तरह गर्मी के दिन सूखे डरख्त से पत्ते झड़ते हैं है.

अल मुअज्जमुल कबीर लिल तबरानी, ​​हदीस-६१५०, मुसनद इमाममद, ४/२८९।

                                        •٠•●●•٠•

और अल्लाह सब से बेहतर जानता है। अल्लाह हमें सुन्नत पर अमल करने की तौफीक दे। आमीन।

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