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ताज़ीम के लिए खड़े होने के शरई अहकाम

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जहां तक ​​किसी के लिए खड़े होने का सवाल है तो ये दो हिसो में तकसीम किया जाएगा:

१. किसी को खुशामदीद करने के लिए खड़े हो जाना

२. किसी की ताज़ीम के लिए खड़े हो जाना

किसी को खुशामदीद करने के लिए खड़े हो जाना:

क्या अमल की इजाज़त है बल्की ये सुन्नत है। सुनन तिर्मिधि, वॉल्यूम। १, किताब ४६, हदीस ३८७२ में है कि रसूल अल्लाह फातिमा र.अ. के लिए खड़े होते थे और फातिमा र.अ. रसूलअल्लाह के लिए खादी होती थी।

तिर्मिधि का स्रोत: http://sunnah.com/urn/637600

और एक हदीस है सही अल बुखारी हदीस ३०४३ में जिसका लिखा है कि साद र.अ.जब फैसला करने आए थे बानी कुरैज़ा के काबिले पर तब रसूलल्लाह ने हुक्म दिया साहबाओ को उनके लिए खड़े होने के लिए।

सहीह अल बुखारी का स्रोत:http://sunnah.com/buhari/56/249

और सही अल बुखारी में एक और हद है जो कहती है कि तल्हा र.अ. ने खड़े हो कर दूसरे सहाबा कब इब्न मलिक र.अ. से हाथ मिलाया, जब उन्हें अल्लाह से तौबा की थी और अल्लाह ने उनकी तौबा कुबूल की थी।

साहिह अल-बुखारी ४४१८

साहिह अल बुखारी का स्रोत: http://sunnah.com/buhari/64/440

याहा ये पता चलता है कि एक सहाबा दूसरे सहाबा के लिए खड़े होते हैं रसूलअल्लाह की मौजुदगी में इसे हम ये पता चला कि किसी को खुश-अमदीद करने के लिए या किसी से हाथ मिलाने के लिए अगर आप खड़े होते हैं तो ये अच्छे आदाब मेरे है और ये सुन्नत भी है.

लेकिन साथ-साथ दूसरी हदीस भी है जो कहती है कि किसी की इज्जत के लिए खड़े होना गलत है। अगर एपी पढ़ेंगे सुनन अबू दाउद, किताबुल अदब हदीस ५२११, ये कहती है की:

अबू उमामा रिवायत करते हैं कि रसूल अल्लाह स.अ.व. लकड़ी से टेक लगाते हुए हम लोगो के पास ऐ। हम उनकी इज्जत के लिए खड़े हो गए। रसूलअल्लाह ने कहा: किसी की इज्जत के लिए खड़े मत हो जैसा कि विदेशी (विदेशी) करते हैं।

सुनन अबी दाऊद ५२११.

सुनन अबू दाउद का स्रोत: http://sunnah.com/abudawud/43/458

और दूसरी हदीस कहती है:

अनस र.अ. रिवायत करते हैं कि हम लोगों के लिए रसूलअल्लाह से ज़्यादा अज़ीज़ कोई नहीं था। (और उन्हें कहा) और वो (सहाबा) रसूलअल्लाह को देख कर कभी खड़े नहीं होते क्योंकि वो जानते थे कि रसूलअल्लाह को ये पसंद नहीं था।

जामी` एट-तिर्मिधि वॉल्यूम। १, पुस्तक ४१, हदीस २७५४।

सुनन तिर्मिज़ी का स्रोत: http://sunnah.com/urn/629720

तो, सारी रिवायतों से पता चलता है कि कभी ये अमल जायज़ है कभी ये सुन्नत है कभी ये मकरूह है और कभी ये हराम है। और जब इस मुआमले में शेख इब्न बाज़ र.अ. से पूछा गया था तो अनहोन इस अमल को तीन(३) इस्सो मैंने तकसीम किया और वो फरमाते हैं:

१. जब कोई शक्स बैठा हुआ होता है और वो किसी इंसान के लिए खड़ा होता है उसको इज्जत देने के लिए जैसे फारसी लोग इज्जत देते हैं अपने इमाम को, जैसा कि रसूलअल्लाह ने जिक्र किया है। ये जायज नहीं है और इसी वजह से रसूलअल्लाह ने लोगों से मुलाकात को कहा जब रसूलअल्लाह ने बैथ कर नमाज पढ़ी।

अनहोन अनलोगो से बैठने को और बैठ कर नमाज पढ़ने को कहा, जब अनलोग खड़े हुए तो रसूलअल्लाह ने कहा। “तुमने तकरीबन उसी तरह मेरी ताज़ीम की जिस तरह फ़ारसी अपने इमामो की ताज़ीम करते थे।”

२. जब कोई शक्स खड़ा हो किसी के आने या जाने के लिए बिना उसको सलाम किए या उससे हाथ मिलाए, सिर्फ उसकी ताज़ीम के लिए। ये कमस्कम मकरूह है. सहाबा रसूल अल्लाह के लिए उनके आने पर खड़े नहीं होते क्योंकि अनलोगो को पता था कि ये अमल रसूल अल्लाह को ना-पसंद था।

३. जब कोई शक्स किसी शक्स के लिए खड़ा होता है जो अंदर आया हो उससे हाथ मिलाने के लिए या उसे बैठने की जगह देने के लिए वगैरा। तो इस अमल में कोई हर्ज नहीं है बाल्की ये सुन्नत है जैसा कि ऊपर ज़िक्र किया गया है।

किताब मजमू' फतावा वा मकालात मुतनव्वियाह ली समाहत अल-शेख अल-अल्लामा अब्द अल-अजीज इब्न अब्द-अल्लाह इब्न बाज़ (अल्लाह उस पर रहम करे), खंड। ४, पृ. ३९४.

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