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हमारे मुआशरे में ये ग़लत फ़हमी है कि रहीम या करीम या इसी तरह दूसरे नाम नहीं रख सकते क्योंकि ये अल्लाह का नाम है। आइए देखते हैं इसकी हकीकत क्या है।
अल्हम्दुलिल्लाह..
रहीम या करीम या रहमान या इसी तरह का दूसरा नाम रखने में कोई हर्ज नहीं है। ये बात सही नहीं है कि ये तमाम अल्फ़ाज़ अल्लाह के नाम है। बाल्की अल्लाह का नाम अर-रहमान, अर-रहीम और अल-करीम है। और इन डोनो अल्फ़ाज़ यानि रहीम और अर-रहीम में बोहत फर्क है। एक जिंदगी से ये समझ लें कि रहीम इस्म-ए-नक्रह (सामान्य संज्ञा) है और अर-रहीम इस्म-ए-मार्फा (व्यक्तिवाचक संज्ञा) है। तो इस्म-ए-नक्रह से इस्म-ए-मरफ़ा बनने का तरीका ये है कि किसी भी इस्म पर अलिफ़-लाम लगा देने से वो इस्म-ए-मरफ़ा बन जाता है। अल्लाह का नाम इस्म ए मार्फ़ा से ही होगा। रहमान इस्म ए नकराह हुआ लेकिन अर-रहमान इस्म ए मारफह हुआ।
रहमान का मतलब होता है रहम करने वाला। तो ये कोई भी हो सकता है जो रहम करे. एक इंसान अगर रहम करता है तो उसे भी रहमान कह सकता है। लेकिन अर-रहमान सिर्फ अल्लाह हो सकता है।
कुरान में खुद नबी ﷺ को रहीम कहा गया है
अल्लाह पाक फरमाते है,
لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِّنْ أَنفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُم بِالْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ
तुम्हारे पास एक ऐसा रसूल तशरीफ़ लाए है जो तुम मेंसे ही है। जिन को तुम्हारी तकलीफ बहुत ही दुश्वार गुजरती है; जो तुम्हारी भलाई के बड़े ख्वाहिश मंद रहते हैं। ईमान वालो के साथ बड़े ही शफीक और रहीम हैं।
सूरह अत-तौबा (९), आयत- १२८.
इस आयत में खुद अल्लाह ने रसूल ﷺ को रहीम कहा है।
इसी तरह, रसूलअल्लाह ﷺ के दामाद और एक बड़े सहाबी ए रसूल, हज़रत अली इब्न अबी तालिब, इनका नाम अली है और आपको पता होना चाहिए कि अल-अली अल्लाह का भी नाम है। [दलील: कुरान, सूरह ५२ आयत ४]।
तो इसमें भी साफ जाहिर होता है कि रहमान, रहीम, करीम, अली, ये तमाम नाम रखने में कोई हर्ज नहीं है बस इन नामो के साथ खास सिफत वाले हुरूफ ना हो जैसे एआर या अल या ऐश वगैराह।
और अल्लाह सबसे बेहतर जानता है।
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