सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नखुन तराशने के बाद दफ़न करना

ro   

सावल:

क्या ये सही है कि नाखुन तराशने के बाद फेंकना हराम है और क्या इन्हें दफ़न करना ज़रूरी है?

जवाब:- नाख़ून तराशना मशरू है क्योंकि नकुन तराशना फ़ितरती क़हसलात में शामिल होता है और तराशने के बाद इन्हें फेंकने में कोई हर्ज नहीं। और इन्हें दफ़न करना ज़रूरी नहीं है। और अगर वो इसे कूड़ेदान में फेंक दे, या फिर दफ़न करदे तो इसमें कोई हर्ज नहीं। (फतवा अल-लजनाह अद-दायमा ली बुहुथ अल-इल्मियाह वाल इफ्ता (५/१७४)।

अक्सर हमारे भारत, पाकिस्तान और इनसे जुड़े हुए मुल्कों में पाया जाता है कि नाखून या बाल को सिर्फ दफन करना चाहिए इसे ऐसे ही कहीं भी फेंकना चाहिए। और कुछ लोग ये भी कहते हैं कि मगरिब के बाद ये चीज़ ना कटी जाए। ये महज़ एक ग़लत फ़हमी है। दीन ए इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन अगर ये डर हो के ये नाखुन या बाल जादूगरों के हटे चढ़ जाएंगे तो फिर इन्हें वहां फेंके या दफ़न करे जहां से ये उनके हाथ ना लगे।

(वल्लाहु आलम)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नमाज़ ए वित्र की दुआ ए क़ुनूत में हाथ उठ जाए या नहीं?

ro    नमाज़ ए वित्र की दुआ ए क़ुनूत में हाथ उठे के बारे में कोई मार्फ़ू रिवायत नहीं है लेकिन हदीस के किताबों में बाज़ सहाबा ए करम र.अ. के आसार मिलते हैं. इस्लामी शरीयत में जब कोई बात रसूलुल्लाह से ना मिले और सहाबा से वो अमल मिल जाए बिना किसी दूसरे सहाबा का एतराज़ किया तो हमें अमल को अपने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन बेहतर यहीं होगा कि हाथ बंद के दुआ ए क़ुनूत पढ़ी जाए क्योंकि हाथ उठाने की कोई मार्फू हदीस नहीं है। इस्के मुतल्लिक शेख जुबैर अली ज़ई का रिसाला अल हदीस जो कि रजब १४३० हिजरी को शाया हुआ था उस रिसाले के सफा नं. १२ पर एक सवाल किया गया था कि, नमाज़ ए वित्र में रुकू से क़ब्ल हाथ उठे बिना क़ुनूत पढ़ने की क्या दलील है? जिसके जवाब में शेख जुबैर अली ज़ई ने फरमाया था, 'नमाज़ ए वित्र में रुकू से पहले क़ुनूत पढ़ने का ज़िक्र सुनन दरकुटनी (२/३२, हदीस- १६४४,वा सनद हसन) और सुनन नसाई (१,२४८ हदीस- १७००) में है। देखिये मेरी किताब हिदायतुल मुस्लिमीन (हदीस- २८ फैदा- ३)। क़ुनूत ए वित्र में हाथ उठना किसी सरीह मारफू हदीस से साबित नहीं है।' मालूम हुआ कि नमाज़ ए वित्र में रुकू से पहले हाथ उठे बिना...

तयम्मुम करने का स्टेप बाय स्टेप तरीका

  ro    पानी ना मिलने की सूरत में (या दूसरे हालात जिसकी शरीयत ने इजाज़त दी हो) पाक मिट्टी को वुज़ू या ग़ुस्ल की नियत करके अपने हाथों और मुँह पर मलना तय्यमुम कहालता है। इसका तरीका ये है: 1. तयम्मुम की नियत करते हुए बिस्मिल्लाह कह कर अपने दोनों हाथ एक बार ज़मीन पर रखे। 2. फिर दाए हथेली का ऊपर वाला हिसा बाए हथेली पर फेर। 3. फिर से हथेलियाँ का ऊपर वाला हिस्सा दाएँ हथेलियाँ पर फेर। 4. फिर अपने दोनो हाथ चेहरे पर फेरे। आपकी तयम्मुम मुकम्मल हुई (इसके बाद वुज़ू के बाद पढ़ी जाने वाली दुआ पढ़ें।) •٠•●●•٠•

नमाज पढ़ते वक्त पैंट को समेटने (फोल्ड करने) का बयान

ro    बोहत सी हदीस है जो नमाज के वक्त पैंट को मोड़ने से मना करती है। इब्न अब्बास र.अ. रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया: 'मुझे हुक्म दिया गया है के मुख्य ७ हदियों पर सजदा करूं पेशानी और आप ने हाथ से नाक की तरफ इशारा किया दोनों हाथों दोनों घुटनों और दोनों क़दमों के पंजों पर और (ये के हम नमाज़ में) अपने कपड़ों और बालों को  इखट्टा ना करें।' (बुखारी: अल अज़ान 812 - मुस्लिम: अल सलाह 490)। कपड़ो को इखट्टा करने का मतलब यह है कि कपड़े को मोड़ना हमें जमीन पर गिरने से रोकने के लिए जब कोई सजदा करता है। इमाम अन-नवावी फ़रमाते हैं: उलेमाओ का इसपर इत्तिफाक है कि अपने कपड़े, आस्तीन वगैरा मोड़ना की इजाज़त नहीं है। उलमाओ के इज्मा से इस चीज़ की इजाज़त नहीं है; ये मकरूह है और साथ-साथ ये ना-पसंददा है। तो अगर कोई शक्स इस हालत में नमाज पढ़ता है तो उसने जैसा कुछ गलत किया है लेकिन फिर भी उसकी नमाज हो जाएगी। इब्न अल-मुंदिर रिवायत करते हैं कि जो ऐसा करता है तो अपनी नमाज़ दोहरानी चाहिए और उनको ये रए अल-हसन अल-बसरी से रिवायत की है। अंत उद्धरण तुहफ़त अल-मिन्हाज, २/१६१-१६२ में ये कहा गया है: जो ...